Thursday, April 21, 2011

डूबते को तिनके का सहारा

कल ही हम सोच रहे थे की कहीं उत्तराखंड का लोक संगीत आने वाले समय में विलुप्त न हो जाए और आज ये शुभ समाचार पढने को मिला...

सोहनलाल चले सिनसिनाटी

जहां इस बात का अफ़सोस है की उत्तराखंड की नयी पीड़ी अपनी संस्कृति अपने लोक गीत, लोक संगीत, लोक नृत्यों से बेरुखी होती जा रही है, वहीं ये देख जानकार ख़ुशी होती है की प्रदेश मूल के लोगों को हमारा संगीत भाता है| केवल भाता ही नहीं वे इसे बढावा भी दे रहे हैं और हमारे कलाकारों को प्रोत्साहन भी| जी हाँ, जैसे डूबते को तिनके का सहारा ही काफी होता है; बाहर देश से ही सही ये सहारा हमारे लिए प्रेरणास्रोत है|

जय भारत ! जय उत्तराखंड!! जय उत्तराखंडी संगीत प्रेमी.

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